''वो भी क्या दिन थे"
बचपन के वो भी क्या दिन हुआ करते थे, ना रात को देर से सोने की फ़िक्र होती थी और ना ही सुबह जल्दी उठने की फ़िक्र होती थी....😊
'वो भी क्या दिन थे"
बचपन के उन दिनों की बात ही कुछ और थी, कि सुबह जल्दी ना उठने पर हमारी मां हमे डांट कर उठती थी। उन दिनों की बात की बात ही कुछ और थी...😊
'वो भी क्या दिन थे"
बचपन के उन दिनों की बाते क्या क्या बताऊं, मै आपको यारों उन दिनों के वो हसीन पलो कहानी अपने ही आप में ही एक अलग यादगार पल हुआ करते थे यारों...😊
'वो भी क्या दिन थे"
बचपन के उन दिनों में हम और हमारी सरारते भी क्या ख़ूब थी, सुबह सुबह जब स्कूल जाने के लिए स्कूल बस जब घर के सामने खड़ी होती थी, तो खिड़की वाली सीट के लिए अक्सर लड़ा करते थे...😊
'वो भी क्या दिन थे"
हमारे बचपन में हमारी मम्मी हम लोगों को बाहर का कुछ भी नहीं खाने देती थी, और हम लोग चुप चाप से अपनी बो मिट्टी की गुल्लक से 2 रुपए का सिक्का निकाल कर, स्कूल के बाहर आइसक्रीम वाले चाचा की आइसक्रीम अपनी मम्मी से छूप कर खाते थे यारों...😊
'वो भी क्या दिन थे"
अक्सर मैंने एक चीज़ ये देखी है, कि कुछ बच्चे ऐसे होते है जो ये बोलते हैं कि मेरे मम्मी पापा ने मेरे लिए कुछ नहीं किया मुझे नए कपड़े ख़रीद कर नहीं दिलाए, मुझे ये खिलौने नहीं दिलाए मुझे नई साईकिल नहीं दिलाई, तो सुनो वो (बच्चे) कहते है।
कि मुझे घुटन होती है एक ही जोड़ी कपड़े बार बार बार बार पहनने पड़ते है, वही टूटे खिलौनों के साथ खेलना पड़ता हैं, वही घुसी पिटी साईकिल चला रहा हूं!
'घुटन" असल में घुटन क्या होती हैं उस छोटे बच्चे से पूछो जो एक वक्त के खाने के लिए खिलौने की दुकान पर काम करता है।
कुछ बच्चे ऐसे भी होते है, जिनका बचपन हमारी तरह खेल कुंद और मौज मस्ती में नहीं गुजरता बल्कि ज़िन्दगी कि कठिन परिस्थितियों में और बुरे वक्त और बुरे हालातों में गुजरता हैं....
"रोने की वजह भी न थी न हंसने का बहाना था क्यो हो गए हम इतने बडे इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।"
- प्रशंग झा
धन्यवाद