मनोविज्ञान के अनुसार , frustration या निराशा/ कुंठा प्रतिकूल परिस्थिति में होने वाली एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है। जोकि गुस्से ( क्रोध)( anger), चिढ़ ( annoyance) और निराशा ( disappointment ) से संबंधित है।
जब किसी इंसान की इच्छाये पूरी ना हो पा रही हों। या उसकी जरूरते पूरी होने मे अड़चने पैदा हो रही हों, तब इंसान निराश हो जाता हैं ।
■ कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो ख़ुद ही अंदर ही अंदर खुटने की आदत बना लेते है, वह लोग कुछ समय बाद निराशा में चले जाते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो और लोगों के दवाब रहते है, आपको किसी के दवाब में नहीं रहना है, क्योंकि आप जब तक दब्बू (दवाब) में रहेंगे, तब तक आपके निराशा में जाने का ख़तरा बना रहेगा।
परेशानी कितनी भी बड़ी क्यों ना हो आपके दिमाग़ में कभी भी आत्महत्या करने का ख़्याल नहीं आना चाहिए, इससे अच्छा है कि आप पुराने लोगों पुराने मोहल्ले को छोड़ कर अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत एक नई जगह, नये लोगों के साथ शुरू कर सकते हैं।
जब हम जरूरत से ज्यादा किसी बात पर ज्यादा ध्यान देने लगते है तब हम निराशा का शिकार होते है। अगर आप निराश है, तो उससे जीतने के लिए आपको अपनी सोच और आदतों को बदलना पड़ेगा। आप काम कीजिए और अपने काम में मस्त रहिए अगर आप कभी निराश हुए भी तो निराशा जल्दी ही ख़तम हो जाएगी।
जिस प्रकार चील की ऊंची उड़ान को देख कर चिड़िया निराश नहीं होती है, वह तो अपने आप ही मस्त रहती है, लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान की तरक्की यानि की ऊंचाईयों को देख कर बहुत जल्दी निराशा में आ जाता है।
हमारे जीवन में कई बार ऐसा समय आता है, जब हम बहुत निराश या उदास रहते है, उस समय हमें अपने आप को अपनी अच्छी चीजों और अच्छी बातों को याद करते रहना चाहिए, जिससे कि हमारी निराशा, उदासी कम हो जाए या हमारे यादों में कहीं गुम हो जाए।
वक्त सारे घाओ को भर देता है, हर चीज वक्त मांगता है वक्त दीजिए फ़िर चाहे वो आप ख़ुद ही क्यों ना हो।
■ परेशान, उदास होने से अच्छा हैं की आप ख़ुद को शांत रखे आप ख़ुद को जितना शांत रखेंगे, उतना ही आप निराशा से दूर रहेंगे। निराशा यह एक ऐसी चीज़ हैं, जो आज के समय में बहुत से लोगों में दिखाई देती है और इंसान को अंदर ही अंदर खोखला कर देती हैं।
"निराशा कोई ईश्वरीय भेंट नही हैं जिसको आप संभाल कर रखें फेक दें इसको ओर मन मस्तिष्क से अपने आप को खाली कर दें निराशा से ! ताकि आप अपने आप को जान सकें।"
-प्रशंग झा