होली का ये त्योहार बहुत रंगीन होता हैं। मगर अब त्योहार, पहले जैसे नही रहे। पहले त्योहार के आने से पहले ही उसकी तैयारी होने लगती थी। और घरों में हमारी मम्मी और बहने सब मिल कर मिठाईयां बनवाते थे। लेकिन अब पहले जैसा कुछ नहीं रहा। मगर इस टेक्नोलॉजी के इतने आगे बड़ जाने से हमारी रोज मर्रा के काम तो आसान हो गए हैं, लेकिन हम अपनी खुशियां और परंपराएं भूल गए हैं। पहले घर-घर जा कर गले मिल कर एक दूसरे को बधाइयां देते थे। लेकिन अब happy Holi लिख कर what's app massage भेज देते हैं। इस टेक्नोलॉजी ने हमारे कामों को आसान किया हैं मगर इसके चलते हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूल गए हैं....!!
आज का विषय हैं- सफ़र होली के त्योहार का........
इस कहानी में एक लड़का हैं, जो शहर में काम करता है। और वो शहर से 60 KM. दूर एक छोटे से गांव का रहने वाला हैं। वहा उसकी मां और उसके छोटे भाई रहते है। पर अफ़सोस उसके पिता अब इस दुनिया में नही रहे, वह लड़का अकेले ही नहीं बल्कि अपने छोटे भाइयों के साथ मिल कर अपना घर संभालता हैं।
बहुत समय बीत गया था, वह लड़का अपने घर नहीं गया था। वह अपने माँ और भाइयों को हर रोज़ याद करता, मगर मिल नहीं पाता, हाला की ऐसा नहीं है, कि वह हर रोज़ अपनी मां और भाईयों से बात करता हैं। जैसा की मैने आपको बताया है, की टेक्नोलोजी ने हमारे काम आसान किए है लेकिन हमें अपनो से ही दूर करती जा रही हैं। धीरे धीरे समय बीतता हैं और देखते ही देखते 'फाल्गुन मास' यानी की होली का त्योहार नज़दीक आ जाता है। तो इस बार होली पर वह लड़का अपने घर जाने वाला है, ओर हर बार की तरह लेकिन इस बार वो अपने शहर से गांव तक का सफ़र तय करेगा। मजे की बात ये हैं कि इस बार वह ये सफ़र अपनी मोटर साइकिल से नहीं बल्कि बस से करने वाला है। और वो सफ़र उसके लिए बहुत ही ख़ास होने वाला हैं......!!
और सफ़र की खास बात ये है, कि वो लड़का काफ़ी अरसे के बाद बस का सफ़र करने वाला हैं। और आप लोग तो जानते ही है, की अपने घर जाने की खुशी क्या होती हैं।
ये उनसे पूछो जो अपना घर चलाने के लिए खुद घर से बाहर रहते हैं। लेकिन मिलता क्या है उन्हे सिर्फ दो वक्त का खाना वो भी बिना मां के हाथ का बना हुआ। और चंद घंटों की नींद वो भी बिना मां के गोद की...
To Be continued...............
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